Thursday, November 17, 2011

सुरक्षा के नाम पर कहीं सेहत ताक पर तो नहीं

24 साल का संजीव एक कुरियर कंपनी में काम करता है। वह सुबह घर से ऑफिस जाने के लिए मेट्रो का इस्तेमाल करता है। रोजाना कम से कम 15 दफ्तरों में डिलीवरी देता है। इसके बाद फिर शाम को वह मेट्रो से घर जाता है। उसके दायरे में आने वाले दफ्तरों में से कम से कम 80 पर्सेंट के गेट पर मेटल डिटेक्टर लगे हुए हैं, क्योंकि वह पूरा दिन फील्ड में रहता है, ऐसे में अपना लंच बॉक्स और पानी की बॉटल भी साथ रखता है। कुल मिलाकर वह पूरे दिन 12 से 15 बार मेटल डिटेक्टर से होकर गुजरता है और इतनी ही बार उसका लंच बॉक्स भी स्कैनर से गुजरता है।मेटल डिटेक्टर के...

Friday, December 4, 2009

दिल्ली की ग्रीनरी यानी सावन के अंधे की हरियालीयहां की ग्रीनरी का ज्यादातर हिस्सा एनवायरनमेंट फ्रेंडली नहींहकीकतनीतू सिंह ॥ नई दिल्लीग्रीन कवर बढ़ाने के मामले दिल्ली सरकार भले ही अपने टारगेट से आगे चलने का दावा कर रही हो, लेकिन यहां की ग्रीनरी का ज्यादातर हिस्सा एनवायरनमेंट फ्रेंडली नहीं है। एनवायरनमेंट के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों का मानना है कि सरकारी एजेंसियों ने ग्रीन कवर की परिभाषा अपने तरीके से बदल दी है और जीआईएस (ज्योग्राफिक इन्फर्मेशन सिस्टम) में जितना एरिया हरा नजर आता है, उसे ग्रीन कवर का हिस्सा मान लिया जाता...

Wednesday, September 9, 2009

सहारा ढूंढने वाले हाथ बने सहारा

वे सब 70 के पार हैं। लेकिन थकान का नामोनिशान नहीं। इस उम्र में जब अक्सर लोग सहारे की तलाश करते हैं, ये अपने अनुभव में जोश को मिला कर गरीबों के लिए काम कर रहे हैं। यह कहानी है रोहिणी के सेक्टर-3 में रहने वाले कुछ बुजुर्गों की जो क्लास-वन ऑफिसर रह चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद भी कुछ करने के जज्बे को कायम रखते हुए इन्होंने ऐसे बच्चों की जिंदगी को सही नींव देने की सोची, जिनके माता-पिता मजदूरी करते हैं और जिनके लिए बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा जरूरी दो वक्त का पेट पालना होता है। रॉ में अफसर रह चुके 75 साल के के. सी. भारद्वाज कहते हैं...

ढलती सांझ में भी धूप की तपिश

वे कभी परिवार और समाज के लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति हुआ करते थे, पर आज ओल्ड एज होम में उपेक्षित जीवन जी रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उनका कोई वली वारिस नहीं है, भरा-पूरा और संपन्न परिवार है, लेकिन उन्हें मिली है उपेक्षा, एकाकीपन और भविष्य के प्रति चिंता। आंखों से खारा पानी सूख गया है, फिर भी वे किसी को दोष नहीं देते। रेत पर खिंची लकीरों की तरह झुर्रीदार चेहरा आसमान की ओर उठाकर ताकते हुए बस वे इतना कहते हैं कि हमें उनसे न कोई शिकवा है न शिकायत। पर हां, उनके कथन में निराशा नहीं, आत्म-विश्वास है, जीने की इच्छा है। शरीर और परिवार जरूर उनका...

Thursday, August 14, 2008

आजादी का अनमोल अहसास

८/८/०८ की तारीख को लेकर काफ़ी पहले से चर्चा चल रही थी, कोई इस तारीख को अशुभ बता रहा था तो कोई शुभ। अब तारीख निकल चुकी है। और लोगों के लिए यह कैसी रही, मैं नहीं जानती मगर हमारे लिए बहुत ही ख़ास उसआप सोच रहे होंगे की मैं हमारे क्यूँ कह रही हूँ, तो मैं बता दूँ-की ये मेरा और मेरी काफ़ी करीबी दोस्त का साझा अनुभव है। सुबह ७ बजे घर से निकलते समय मुझे काफ़ी बुरा लग रहा था क्यूंकि आमतौर पर मेरी सुबह ९ बजे के बाद ही होती है। मगर मजबूरी में इंसान क्या नहीं करता, सो मुझे भी आए दिन अपनी सुबह की अच्छी नींद गवानी ही पड़ जाती है। चलिए उस...

Saturday, August 9, 2008

दर्द का ब्रेकिंग न्यूज़ या ब्रेकिंग न्यूज़ का दर्द

आज कल ये दोनों ही बातें काफ़ी कामन हो गई हैं। मगर इस कामन हो चुके सच ने काफ़ी लोगों को परेशान कर दिया है। परेशानी के दायरे में सिर्फ़ आम ही नहीं खास लोग भी शामिल हैं, लेकिन दिक्कत ये है की इससे निजात मिलने की उम्मीद दूर- दूर तक नजर नहीं आ रही है। आम लोगों को ये समझ नहीं आ रहा है की आख़िर चल क्या रहा है । जब तक अमिताभ बच्चन को खांसी आने और ऐश्वर्या राय को जुकाम होने की बात ब्रेकिंग न्यूज़ होती थी तब तक तो ये सोच कर चुप रह जाते थे की बड़े स्टार की बातें हैं, उनके बहुत चाहने वाले हैं जिन्हें उनकी सलामती की बातें बताना जरूरी है,...

Tuesday, August 5, 2008

बदलते मायने.........

समय ने न सिर्फ़ हर चीज के मायने बदल दिए हेँ बल्कि रिश्तों को देखने का नजरिया भी बदल दिया है खास तौर से दिल्ली जैसे शहरों में रहने वालों के। यहाँ वालों के लिए तो यह बदलाव सामान्य बात है, मगर छोटे शहरों या कस्बाई कल्चर से आने वाले लोगों के लिए यह बदलाव या तो एक मजाक लग सकता है अथवा उनके पैरों नीचे से जमीं खिसकाने वाला हो सकता है। पिछले दिनों मेरी एक दोस्त का जन्मदिन था, उसने काफ़ी पहले से प्लानिंग कर रखी थी की ऑफिस से छुट्टी लेकर हम पूरा दिन मस्ती करेंगे, एक मूवी देखेंगे और हो सका तो सेंट्रल पार्क भी जायेंगे। उसकी तमन्ना थी इसलिए...