८/८/०८ की तारीख को लेकर काफ़ी पहले से चर्चा चल रही थी, कोई इस तारीख को अशुभ बता रहा था तो कोई शुभ। अब तारीख निकल चुकी है। और लोगों के लिए यह कैसी रही, मैं नहीं जानती मगर हमारे लिए बहुत ही ख़ास उसआप सोच रहे होंगे की मैं हमारे क्यूँ कह रही हूँ, तो मैं बता दूँ-की ये मेरा और मेरी काफ़ी करीबी दोस्त का साझा अनुभव है।
सुबह ७ बजे घर से निकलते समय मुझे काफ़ी बुरा लग रहा था क्यूंकि आमतौर पर मेरी सुबह ९ बजे के बाद ही होती है। मगर मजबूरी में इंसान क्या नहीं करता, सो मुझे भी आए दिन अपनी सुबह की अच्छी नींद गवानी ही पड़ जाती है। चलिए उस दिन भी जल्दी से तैयार होकर एम्स पहुँची। जिस काम के लिए गई थी वह एक घंटे में ही निबट गया फ़िर ख़बरों की तलाश में कुछ लोगों से भी मिल आई। सब कुछ निबट गया पर अब एक बार घर से निकल चुकी थी इसलिए घर वापस जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था, क्यूंकि मुझे दो बजे एक सीनियर डॉक्टर से मिलने के लिए राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल जन था इसलिए अपनी दोस्त को फोन किया, पता लगा की इत्तिफाक से वह भी एम्स में ही थीं, क्यूंकि उनकी दादी वहां भरती थीं। मैं उनके पास चली गई। उन्होंने कहा ही स्वतंत्रता दिवस की रिपोर्टिंग के लिए उन्हें पहचान पत्र बनवाना है और उसका अप्लिकेशन अभी तक नहीं दिया है। तो फैसला ये हुआ की हम लोग पहले प्रेजिडेंट हाउस जाएँगे फ़िर वहीं से वह मुझे राम मनोहर लोहिया छोड़ देंगी।
थोडी देर में हम लोग हॉस्पिटल से निकले। उस दिन हलकी बारिश तो पहले से ही हो रही थी, हमारे निकलते ही काफ़ी तेज हो गई और प्रेजिडेंट हाउस तक पहुँचते पहुँचते पानी ही पानी नजर आने लगा। बारिश का नजारा देख कर भीगने का मन करने लगा लेकिन सोचा की नहीं, भीग कर किसी से मिलने जाना अच्छा बहिन लगेगा। लेकिन प्रेजिडेंट हाउस में अप्लिकेशन देने पहुंचे तो पता लगा की एक बज गया है इसलिए दो बजे के बाद ही काम हो पाएगा। अब एक घंटे तक इन्तेजार करना था और बारिश हो रही थी इसलिए गाड़ी में बैठे रहना भी हजम नहीं हो रहा था, फ़िर हम दोनों ने वहीँ बारिश में भीगने का फ़ैसला किया। बहार निकले और पूरे कैम्पस में घूमने लगे। घुमते-घुमते हम उस गेट के पास पहुँच गए जहाँ से मैं हाल के लिए प्रवेश किया जाता है। वहीँ एक दीवार पर बैठकर हम बातें करते रहे, अपने ख्वाबों को पंख लगाकर उडाते रहे।
हर तरफ़ सिक्यूरिटी वाले तैनात थे इसलिए मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था की कोई कुछ बोलने न आ जाए, मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उन लोगों ने दूर से हमारे ऊपर नजर राखी थी मगर किसी ने कुछ कहा नहीं। प्रेजिडेंट हाउस कैम्पस में बैठकर भीगने का मजा हमारे लिए अनमोल था और इससे भी खास था अपने आप को आजाद महसूस करने का एहसास। क्यूंकि मुझे नहीं लगता की दुनिया के किसी भी देश में आम इंसान को इतने करीब से अपने देश की ऐसी धरोहर को देखने और उसे महसूस करने का मौका मिलता हो। हलाँकि स्वतंत्रता दिवस करीब होने की वजह से कुछ लोग सिक्यूरिटी पर सवाल भी उठा सकते हैं, वह भी सही है, मगर हमारे लिए आजादी का एहसास इससे कहीं ज्यादा अहम् था................
वरना तो आज कल हर पल की चिंता कभी आजादी का एहसास ही नहीं होने देती ...........
2 comments:
आप को आज़ादी की शुभकामनाएं .....
कम ही होते हैं जिन्हें इस तरह आज़ादी का अहसास हो पाता है।
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