Sunday, April 20, 2008

मां


खुशियॊं के सागर की सीमा हॊ तुम ।
मधुर सुरॊं की वीणा हॊ तुम ।।
मन कॊ शीतल करता संगीत हॊ।
अधूरे मन की पूर्णता हॊ तुम।।

1 comment:

अनुराग अन्वेषी said...

मां होती ही ऐसी है। प्यारी अभिव्यक्ति। बधाई। लगे रहो। उम्मीद है एक बहतर ब्लॉग बनेगा।