Thursday, April 10, 2008

जिंदगी की शुरूआत से लेकर आज तक मिलने वाले सारे ही रास्ते अनजाने थे। अनजाने रास्तों पर चलते-चलते न जाने कब इन रास्तों से दोस्ती हो गई। अब तलाश रही हूं कुछ और नए रास्ते.....नई दुनिया और नई मंजिलें...

1 comment:

Ramesh Ramnani said...

बहुत खूब। ना जाने ऐसे ही कई अंनजान रास्तों से आपकी ही तरह हमें भी इनसे मौहब्बत सी हो गई है। बहुत अच्छा लिखा है। आपकी खुशियों का धरौन्दा बहुत ही खूबसूरत है। काश ऐसे ही धरौन्दे बने दुनियां में।

रमेश