Thursday, November 17, 2011

सुरक्षा के नाम पर कहीं सेहत ताक पर तो नहीं

24 साल का संजीव एक कुरियर कंपनी में काम करता है। वह सुबह घर से ऑफिस जाने के लिए मेट्रो का इस्तेमाल करता है। रोजाना कम से कम 15 दफ्तरों में डिलीवरी देता है। इसके बाद फिर शाम को वह मेट्रो से घर जाता है। उसके दायरे में आने वाले दफ्तरों में से कम से कम 80 पर्सेंट के गेट पर मेटल डिटेक्टर लगे हुए हैं, क्योंकि वह पूरा दिन फील्ड में रहता है, ऐसे में अपना लंच बॉक्स और पानी की बॉटल भी साथ रखता है। कुल मिलाकर वह पूरे दिन 12 से 15 बार मेटल डिटेक्टर से होकर गुजरता है और इतनी ही बार उसका लंच बॉक्स भी स्कैनर से गुजरता है।
मेटल डिटेक्टर के दौर की लाइफ का संजीव एक उदाहरण भर है। उसके जैसे हजारों युवाओं का डेली शेड्यूल कुछ इसी तरह का होता है। क्योंकि आजकल एयरपोर्ट या किसी सरकारी दफ्तर में ही नहीं, मॉल, मेट्रो स्टेशन, सिनेमा हॉल, कुछ रेलवे स्टेशन और यहां तक कि बड़ी कंपनियों के दफ्तर में प्रवेश के दौरान मेटल डिटेक्टर से होकर गुजरना पड़ता है। इनमें से अधिकतर जगहों पर वॉकथ्रू मेटल डिटेक्टर के साथ-साथ पोर्टेबल मेटल डिटेक्टर और बैगेज स्कैनर जैसी चीजें भी इस्तेमाल की जाती हैं। पोर्टेबल मेटल डिटेक्टर लोगों के शरीर से लगाकर उनकी जांच की जाती है। कुल मिलाकर ये मेटल डिटेक्टर शहरी जीवन की नियमित दिनचर्या का हिस्सा बनते जा रहे हैं। हालांकि, आए दिन होने वाली आतंकी घटनाओं से बचाव के मद्देनजर इन चीजों की जरूरत से भी इनकार नहीं किया जा सकता, मगर इन उपकरणों की बढ़ती तादाद को देखकर अकसर दिमाग में कई सवाल कौंधते हैं, मसलन हम एक्सरे, अल्ट्रासाउंड मशीनों और मोबाइल जैसी चीजों से निकलने वाले रेडिएशन के मसले पर तो बात करते हैं पर मेटल डिटेक्टर की क्यों नहीं, जबकि इनमें से भी उसी तरह का रेडिएशन निकलता है। इन मशीनों के रेडिएशन से सुरक्षा के लिए कोई पैमाना निर्धारित किया गया है और अगर पैमाना है तो उसका कितना पालन हो रहा है? क्या तमाम जगहों पर इस्तेमाल हो रहे इन उपकरणों के रेडिएशन मीटर की जांच के लिए कोई विशेष एजेंसी अथवा कमिटी का गठन किया गया है?
पड़ताल करने पर इनमें से 90 पर्सेंट सवालों का जवाब ना में मिला। इन उपकरणों को बनाने और इंस्टॉल करने वाली कंपनियां जरूर यह दावा करती हैं कि मशीनों में रेडिएशन की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठनों के मानकों के अनुसार तय की जाती हैं, मगर एक बार की गई सेटिंग क्या हमेशा बनी रहती है, इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिलता है। कई अध्ययनों से यह बात साबित हो चुकी है कि नियमित रूप से रेडिएशन के संपर्क में आना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे न सिर्फ कैंसर और न्यूरो से जुड़ी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं बल्कि पुरुषों में स्पर्म काउंट कम हो सकता है और महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ सकता है। अगर गर्भवती महिला रेडिएशन की चपेट में आ जाए तो उसके अजन्मे बच्चे पर भी बुरा असर पड़ता है। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के एक्सपट्र्स कहते हैं कि मेटल डिटेक्टर को लेकर अब तक देश में अलग से कोई स्टडी नहीं की गई है, मगर इन मशीनों में रेडिएशन की मात्रा काफी कम होती है और रेडिएशन का स्तर सही रहता है तो कैंसर जैसी गंभीर समस्या सामने नहीं आ सकती, मगर टॉक्सिकोलॉजिस्ट डॉ। हसनैन पटेल की राय इससे उलट है। वह कहते कि सिर्फ इसलिए बॉडी स्कैनर के रेडिएशन के असर से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस बारे में कोई स्टडी नहीं की गई। वह अब तक इससे संबंधित स्टडी नहीं होने के पीछे बड़ी बिजनेस लॉबी को जिम्मेदार ठहराते हैं।
रॉकलैंड हॉस्पिटल की स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. आशा शर्मा कहती हैं, बॉडी स्कैनर को लेकर देश में कोई स्टडी नहीं हुई है फिर भी मैं अपने मरीजों को इन चीजों के बार- बार एक्सपोजर से बचाव की सलाह देती हूं। हो सकता है कि एक-दो बार ऐसी मशीनों के संपर्क में आना खतरनाक न हो मगर बार- बार इनके संपर्क में आने से सेहत को खतरा हो सकता है। अमेरिका में हुई एक स्टडी के मुताबिक 200 रेम्स या इससे ज्यादा रेडिएशन के संपर्क में आने से बालों के झडऩे की समस्या शुरू हो जाती है। 5000 रेम्स से ज्यादा रेडिएशन के संपर्क में आने पर ब्रेन के सेल्स डैमेज हो सकते हैं। रेडिएशन नर्व के सेल्स और छोटी रक्त नलिकाओं को खत्म कर सकता है ऐसे में ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है, जो कि मौत का कारण भी बन सकता है। शरीर के कुछ हिस्से रेडिएशन के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। थायरॉयड ग्लैंड इनमें से एक है। यह रेडियोएक्टिव आयोडीन को लेकर काफी ग्रहणशील होती है। ज्यादा मात्रा में रेडिएशन से यह ग्लैंड पूरी तरह डैमेज हो सकती है। 100 रेम के स्तर वाले रेडिएशन के संपर्क में आते ही रक्त में लिंफोसाइट सेल काउंट कम होने लगता है। ऐसे में व्यक्ति विभिन्न तरह के संक्रमण के लिए ज्यादा प्रोन हो जाता है। ऐसे मामलों में आमतौर पर फ्लू के लक्षण दिखते हैं, लेकिन सही स्थिति का पता तब नहीं लगाया जा सकता जब तक ब्लड काउंट के लिए टेस्ट न कराया जाए। हिरोशिमा और नागासाकी से मिले डेटा में पाया गया कि रेडिएशन के लक्षण 10 सालों तक बने रह सकते हैं और आगे चलकर ये ल्युकीमिया, लिंफोमा जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ा सकते हैं। 1000 से 5000 रेम्स तक रेडिएशन के संपर्क से छोटी रक्त नलिकाएं तुरंत डैमेज हो सकती हैं, जो हार्ट फेलियर की वजह बन सकती हैं और ऐसे में तुरंत व्यक्ति की मौत हो सकती है। 200 रेम्स तक एक्सपोजर से व्यक्ति का गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक प्रभावित हो सकता है। ऐसे में मितली, खून की उल्टी और डायरिया जैसे लक्षण सामने आते हैं। 200 रेम्स के एक्सपोजर से रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट भी प्रभावित हो सकता है। एक्सपोजर लंबा होने पर पुरुषों का स्पर्म काउंट शून्य तक पहुंच सकता है। एक्सपट्र्स गर्भ के पहले तीन महीनों के दौरान बॉडी स्कैनर के संपर्क में आने से महिलाओं को सख्ती से मना करते हैं, क्योंकि इसी दौरान भ्रूण में महत्वपूर्ण अंगों की संरचना होती है और इस स्थिति में रेडिएशन के असर से उनमें जन्मजात अपंगता आ सकती है। रेडिएशन दिल की धड़कनों को नियंत्रित रखने के लिए मरीजों में लगे पेसमेकर जैसी डिवाइस की कार्यक्षमता को भी प्रभावित कर सकती है। अमेरिका की हेल्थ फिजिक्स सोसायटी के मुताबिक मेटल डिटेक्टर में इस्तेमाल से होने वाले आयनित रेडिएशन रैड, रेम, रोएंटजेन जैसी यूनिटों में नापी जाती है। यहां के ऑफिस ऑफ रेडिएशन सेफ्टी के मुताबिक, गर्भवती महिलाओं को पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान 500 मिलीरेम्स अथवा 0.5 रेम से ज्यादा और एक महीने के भीतर 50 एमरेम से ज्यादा एक्सपोजर नहीं होना चाहिए। हालांकि मेटल डिटेक्टर से काफी कम रेडिएशन निकलता है, लेकिन कुछ मेडिकल एक्सरे 5 एमरेम तक तो कुछ 60 एमरेम तक रेडिएशन एक्सपोजर दे सकते हैं। मेटल डिटेक्टर अगर सही नहीं है तो उसका रेडिएशन भी खतरनाक स्तर तक पहुंच सकता है।
हेल्थ फिजिक्स सोसायटी ने ऐसे उपकरणों के इस्तेमाल के संबंध में कुछ दिशानिर्देश भी दिए हैं, जिनमें कहा गया है कि इनका इस्तेमाल प्रशिक्षित लोगों द्वारा ही होना चाहिए। अगर कोई रेडिएशन वाल उपकरणों के आस-पास रोजाना काम करता है तो उसे इससे दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। यह सुनिश्चित करें कि डिवाइस ब्लॉक्ड या शील्डेड है। ऐसे उपकरण की रेडिएशन लेवल ज्यादा नहीं हो रही है यह जांचने के लिए नियमित तौर पर इसे मेजर किया जाना चाहिए। अगर इसके लिए निश्चित नहीं हैं तो एक रेडिएशन लेवल का पता लगाने वाले बैज पहन कर रखें। अगर आपको ऐसा लगता है कि रेडिएशन के संपर्क में आए हैं तो तुरंत हाथ साबुन से धोएं और रेडिएशन के असर को खत्म करने के लिए एक्सपर्ट के पास जाएं। मगर यहां ज्यादातर जगहों पर सुरक्षा गार्ड इन उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें इसका कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। ऐसे में तकनीकी खराबी उन्हें समझ ही नहीं आएगी। इस स्थिति में मेटल डिटेक्टर के असर को लेकर न सिर्फ सरकार को बड़े पैमाने पर अध्ययन कराना चाहिए, बल्कि इनके इस्तेमाल के लिए जरूरी दिशानिर्देश भी तैयार कराने चाहिए और इन दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन हो इसके लिए एक स्वतंत्र एजेंसी का गठन भी हो ताकि समय- समय पर जांच और लापरवाही की स्थिति में जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सके, क्योंकि ये मेटल डिटेक्टर नई पीढ़ी की दिनचर्या का हिस्सा बन गए हंै और उनकी सेहत के साथ देश का भविष्य जुड़ा हुआ है।

1 comment:

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