Wednesday, April 23, 2008

क्या पता...


ये सफर कितना कठिन है, रास्तॊं कॊ क्या पता
कैसे-कैसे हम बचे हैं, हादसॊं कॊ क्या पता
आंधियां चलती हैं, तो फिर सोचती कुछ भी नहीं
टूटते हैं पेड़ कितने, आंधियों को क्या पता
अपनी मर्जी से वो चुने, अपने मन से छोड़ दें
किस कदर बेबस है गुल, तितलियों को क्या पता
एक पल में राख कर दे, वो किसी का आशियां
कैसे घर बनता है यारो, ये बिजलियों को क्या पता
आइने ये सोचते हैं, सच कहा करते हैं वो
उनके चेहरे पर हैं चेहरे, आइनों को क्या पता
जैसे वो हैं हम तो ऐसे हो नहीं सकते
हम उन्हें भी चाहते हैं, दुश्मनों को क्या पता

1 comment:

neel kamal said...

lagtaa hai aap ko jindgi se kafi shikayte hai.sabhi ko rahti hai.phir bhi aap ne acha likha hai.